जय
जय शब्द का विष्लेशण किया जाये तो ऐसा प्रतीत होता है कि किसीको परास्त करना ही जय है। मूल रुप से किसी भी व्यवधान को अतिक्रम करना जय है। जय एक व्यक्तिगत उपलब्धि है न कि किसी और की पराजय। और संजय संजय है क्यों की उन्होने धृतराष्ट्र को स्थान और काल के व्यवधान् को अतिक्रम करने मे सहायता की।
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